मेरे विचार
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महफ़िलों में रात को रात नहीं कहते हैं,
हो अगर ज़ख्म तो उसे छुपाते हैं,
पी जाते हैं गम को,
एक प्याले जाम के संग,
फिर हो जाये जो पेट में दर्द,
तो मुस्कराहट से बयां करते हैं,
खुद सुमार करते हैं ,
मगर खुद सुमार नहीं होते,
पी के एक जाम हम भी बहक लेते हैं,
कहते हैं सब एक चाँद है आश्मा .में,
मगर हम तो जमी पे,
चांदों से घिरे रहते है,
एक प्याले जाम का असर है ये,
की हम महफ़िलों में रात को रात नहीं कहते हैं ।
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