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गमों को बहलाके, थोड़ा सा फुसलाके,
बंद कर उन्हें, आँखों में ला के,
फिर बना के आँसू, तू बहा ऐसे,
कि किसी को, नज़र न आए,
पलकों पर ही, सूख जाए,
पलकों पर ही सूख जाए।
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दर्द मिला हमें, तो रब खफा हो गए,
वो न मिले हमें, तो बेवफा हो गए,
करवट बदलकर हम, कुछ ऐसे चले गए,
जैसे कोई था ही नहीं, जिंदगी में कभी,
और, तब हम अकेले रह गए।
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करवटों में जिंदगी की, करवट नज़र आती है,
सोये हुए हम अच्छे, जगे हैं तो बुरे नज़र आते हैं,
नीद में देखे जो ख्वाब, वो सच न हो जाए,
इसीलिए खुली आँखों से, नए ख्वाब सजाते हैं।
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आलमे तमन्ना की थी, हमने भी कभी,
मगर वह पूरी, न हो सकी,
हाजी-अली के दरबार में, भीड़ थी इतनी,
कि तमन्ना हमारी, लाइन में,
खड़ी न रह सकी।
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