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यौन संबंधों की आयु सीमा में वृद्धि – एकतरफा प्रस्ताव या सामाजिक जरूरत

मेरे विचार
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एकतरफा प्रस्ताव – Jagran Junction Forum

यौन संबंधों की आयु सीमा में वृद्धि पर अपनी राय रखते हुए मैं आपको उस युग में ले जाना चाहता हूँ जब हमारे देश में कम उम्र में ही लड़के-लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। एक छोटे उम्र के लड़के और लगभग उसी उम्र की लड़की का विवाह होना जायज था। इससे यह होता था कि दोनों बच्चों का प्राक्रतिक रूप से शाररिक और मनसिक विकास साथ-साथ होता था। जिसके चलते बलात्कार जैसी समस्याएँ कम होती थी। लेकिन इस प्रथा को तब बदलना पड़ा जब आदमियों ने अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक ऐसी प्रथा का दौर शुरू कर दिया जिसमें एक छोटी लड़की का विवाह एक बड़े प्रौढ़ आदमी से कर दिया जाता था। जिससे समय में एक अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया, जिसके चलते समय को बदलना ही पड़ा। और बाल-विवाह पर रोक लगी।
इसके बाद एक युग वह भी था जब ईस्ट-इंडिया कंपनी भारत आई और अपने साथ अपनी संस्कृति भी लाई। उनकी संस्कृति में एक खुला पन था। जो भारत की संस्कृति में नहीं था। उन्होने पूरे भारत में अपने साम्राज्य के साथ-साथ अपनी संस्कृति के बीज भी फैलाये। और लगभग 200 साल तक हम उनकी संस्कृति और अपनी संस्कृति के बीच झूलते रहे। हमने उनके द्वारा लगाए पेड़ों को तो काट दिया लेकिन पूरी तरह से उनकी जड़ों को खत्म नहीं कर पाये। आजादी के बाद ऐसा माहौल बना जिसमें भारत में दो तरह के लोग हुये एक तो वे लोग जो फिर से पुराना भारत बसाना चाहते थे जो मुश्किल था, दूसरे वे लोग जो एक नया और समृद्ध भारत की कल्पना कर रहे थे। इसी के चलते भारत में बहुत से बदलाव हुये और तकनीकी के छेत्र में भारत में सिनेमा का आगाज हुआ। जिसमे पहले तो पुराने भारत की तस्वीर दिखाई गई , उसके बाद मध्य काल का भारत दिखाया गया और आजकल आधुनिक भारत को दिखाया जाता है। और इन्हीं तीन हिस्सों में यौन सम्बन्धों को स्थापित करने का तरीका भी दिखाया गया। जहां नायक और नायिका पहले केवल शादी पर मिला करते थे, मध्य काल में वे शादी से पहले छुप-छुप कर मिलने लगे, और आज सिनेमा में क्या-क्या दिखाया जाता है आप जानते ही हैं। मैं यह नहीं कह रहा की सिनेमा बुरा है, सिनेमा तो वही दिखाता है जो समाज में घटित हो रहा है। मैं तो सिनेमा के माध्यम से बस इतना कहना चाहता हूँ कि आज चाहे यौन संबंधों की आयु सीमा बड़े या घटे इससे कोई फरक नहीं पड़ने वाला। फरक बस इतना पड़ेगा कि अगर प्रेमी-प्रेमिका में से कोई भी प्यार में असफल रहा तो हमें एक नया बलात्कार का समाचार सुनने को मिलेगा। और जिस तरीके से इंटरनेट पर यौन संबंधों का जाल फैला हुआ है हम यह नहीं कह सकते कि एक 13-14 साल का बच्चा इन बातों को नहीं समझता है। आज मैं जब टीवी पर कार्टून देखता हूँ तो उसमें भी 2-3 साल के बच्चों के लिए ऐसे एपिसोड बनाये जाते हैं जिनमें गर्ल फ्रेंड-बॉय फ्रेंड का समावेश होता है। तो हम यह कैसे कह सकते हैं कि बच्चे इन सब के बारे में नहीं जानते। जहां तक सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित करने की बात है तो इसके लिए किसी कानून की जरूरत तो है ही नहीं। और जब सरकार जबर्दस्ती शारीरिक सबंध स्थापित करने वाले यानि की बलात्कार वाले कानून का कठोरता से पालन नहीं कर पा रही तो फिर सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित करने वाले कानून का तो कोई ओचित्य ही नहीं है। और जब यह कानून आएगा तो बलात्कार के समाचारों की व्रद्धि होगी न की कमी क्योंकि आज माहौल ही ऐसा बन चुका। बाहर का नहीं घर का माहौल ज्यादा बुरा है , आज घर में बच्चों को केवल तब प्यार या दुलार मिलता है जब वे किसी परीक्षा में अव्वल आते हैं और तभी उन्हे सिनेमा दिखाने या फिर कहीं घूमाने ले जाया जाता है। आज माता-पिता इतने व्यस्त हैं कि उनके पास बच्चों को प्यार करने का समय ही नहीं है। इन सब के बीच जब बच्चा प्यार की तलाश करता है तो वह प्यार उसे अपने किसी सहपाठी में ही मिलता है। जिसके पास उसको सिनेमा दिखाने या घूमाने का पूरा समय होता है। इन सब के बीच प्राकर्तिक रूप से यौन आकर्षण पूरी तरह से संभव है। मेरा मानना है कि सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित करने वाले कानून का कोई महत्व नहीं है। चाहे आयु बड़ा लो या घटा लो। परिस्थितियाँ तो तब बदलेंगी जब लोग अपने घर का माहौल प्यार भरा बना लेंगे और बच्चों को पूरा समय देंगे, जिससे बच्चों को बाहर प्यार तलाशने की या किसी बाहरी व्यक्ति के समय की जरूरत ही नहीं होगी। और जिस तरीके से सरकार महिलाओं के लिए एकतरफा कानून बनाए जा रही है यह तो वही कहानी दोहराई जा रही जिसमें पहले आदमियों का वर्चस्व था अब महिलाओं का, जिससे समय में फिर से अस्थिरता आएगी और एक बार फिर समय को बहुत बड़ा बदलाव करना पड़ेगा। एक ओर तो सरकार कहती हैं कि आज महिला और पुरुष में कोई भेद नहीं है फिर क्यों सरकार एकतरफा कानून बनाए जा रही है। यह तो ठीक वैसा ही है जैसे सरकार एक तरफ कहती है कि जाति-पाति का भेद मिटाना है और हर सरकारी फॉर्म में सबसे पहले जाति भरना पड़ता है। आज सरकार को खुद ही पता नहीं है कि वह करना क्या चाहती है। ऐसी सरकार के इस कानून से बेहतर तो यह है कि जनता खुद सोचे कि उन्हे अपने बच्चो को क्या देना है। एक और कानून, केवल पैसा या प्यार और समय।

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