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आज इंसान गधा बन रहा

मेरे विचार
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आज इंसान गधा बन रहा ,
जीता था जींदगी पहले,
आज जींदगी ढो रहा,
@@@@@@@@@@@
ढोता है क्यों,
पता नहीं,
मगर किसके लिए,
यह जानता है,
नीद चैन सब उड़ रहा,
आज इंसान गधा बन रहा,
@@@@@@@@@@@
कभी सोचता है,
आगे वाले गधे से,
और आगे निकल जाये,
@@@@@@@@@@@
कभी सोचता है,
इसी के साथ ही चले,
क्योंकि जाना है कहाँ ,
पता ही नहीं,
मंजिल को खोजते-खोजते,
यह खुद खो रहा,
आज इंसान गधा बन रहा ,
@@@@@@@@@@@
खुशियों की जगह आज, पैसा है,
इसी में तो ग़मों का, रेंशा है,
इस सत्य को समझने से,
यह इनकार कर रहा,
आज इंसान गधा बन रहा।

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